धार्मिक कौन ?एवं अधर्मी (दुष्ट) को पहचाने ! दूसरों का हित करने वाला धर्मी और अहित करने वाला (र्अथात पीड़ा पहुचानेबाला अधर्मी) -पर हित सरस धरम नहीं भाई -पर पीड़ा सम नहीं अधमाई -तुलसी दास के राम चरित मानस के अनुसार
भारत देश के विकास और खुशहाली के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण सचाइयां –
सभी ब्यक्तियों , समूहों ,समाजों, देशों की सभी समस्याओं के समाधान के लिए पूर्ण रूप से आध्यात्मिक क्षेत्र तथा भौतिक क्षेत्र दौनों क्षेत्रों का ज्ञान होना आवश्यक है| क्योंकि दोनों पंखों के बिना कोई भी पक्षी रूपी मनुष्य विकास, खुशहाली, शांति और आनंद की उड़ान नहीं भर सकता है| उसका जीवन व्यर्थ ही जाएगा और अशांति, असंतोष, असुरक्षा में ही जिएगा। देश में खुशाली तभी आ सकती है जब आदमी प्रकृति, ईश्वरीय, धार्मिक, नैतिक, मानवीय सोच अपने जीवन में उतार कर जिएगा तभी वह अपने जीवन को सार्थक बना सकेगा और दूसरों को भी सार्थक जीवन बनाने के लिए प्रेरित करेगा | अन्यथा वह स्वयं ही अपनी और दूसरे की, पड़ोस की, गांव-मोहल्ला, नगर, देश और संसार की समस्याओं और दुखों के के लिए स्वयं दोषी और जिम्मेदार है।
भारत लगभग 1000 साल गुलाम क्यों रहा ? इसका मुख्य कारण अंधविश्वास पाखंड (यानी मूर्खतापूर्ण बेवकूफी से भरे हुए सोच वाले कार्य) जोकि पूरी प्राकृतिक व्यवस्था कार्य और कारण के सिद्धांत पर चल रही है उसके विरुद्ध है ।
हमारे तथाकथित धर्म के ठेकेदारों के द्वारा घोर अधर्म किया गया और आज भी किया जा रहा है| इसी कारण देश पतन और नरक में महसूस कर रहा है |
और आज भी विदेशी खरबों डॉलर अर्थात प्रत्येक व्यक्ति पर लगभग सवा लाख रुपए विदेशी कर्जा है| अर्थात हमारा देश भिखारी है| बड़ा भिकारी है| इसलिए आर्थिक रूप से बड़ा गुलाम भी है| इसके कारणों और निवारणों पर जाना ही पड़ेगा |इसलिए आजाद होने पर प्रश्न चिन्ह है ?
1-अंधविश्वास एवं पाखंड तथा धर्माधिकारियों के लालच ---- अंधविश्वास एवं पाखंड तथा धर्माधिकारियों के लालचों के कारण देश गुलाम और लाचार बना | उदाहरण के लिए सोमनाथ के मंदिर में भरे अरबों -खरबों के हीरे-जवाहरातों को महमूद गजनवी ने सोम नाथ के मंदिर पर आक्रमण कर 14 वार लूटा और मंदिर के पुजारी हर वार कहते रहे कि शंकर जी के मंदिर को कोई नहीं लूट सकता मंदिर में प्रवेश ही नहीं कर सकता |और वहां के क्षत्रिय राजा को महमूद गजनवी से लड़ने के लिए जानकारी तक नहीं पहुंचाई |साथ ही मंदिर के पुँजारियों ने प्राणों के डर और संपत्ति के लालच में 14 वार गुजरात के सोमनाथ मंदिर में अरबों-खरबों के हीरे जवाहरात आदि अन्य संपत्ति महमूद गजनवी से लुटबाने में मदद कर मूर्खता की |
२-राजा जय चन्द एवं राजा प्रथ्बीराज जो आपस में सगे रिश्तेदार थे,इन जैसों की महामूर्ख्ताओं, बड़े अहंकारों के कारण जो आपस में ही एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए और मुहम्मद गोरी को लूटने और शासन करने का अवसर मिला और भारत के लोग गुलाम हो गए |
3-- धर्म के ठेकेदारों का अहंकार, अन्धविश्वास ,झूठ, धोखाधड़ी, देश के जन सामान्य को सत्ता से दूर रखकर उनको लड़ने के लिए मना करते रहने से विदेशियों के हाथ पराजय हुई| इससे देश गुलाम हुआ और देश के पतन का कारण बना|
4-- धर्म के नाम पर धर्म के ठेकेदारों ने अधर्म और घोर अमानवीय कार्य किये,जिसमे ऊंच-नीच ,छुआ–छूत, छोटे –बड़े की ब्यवस्था समाज में बनाकर रखी| जिससे मनुष्यों में परस्पर मित्रता, समानता,, बंधुत्व,सभी परमपिता ईश्वर की संतान होने की भावना पैदा नहीं हो सकी | धर्म के ठेकेदारों के द्वारा अहंकार से ग्रषित होकर,अंधविश्वास,ऊच नींच,छुआ छूत, वैमनस्य, द्वेष,शोषण ,अन्याय, अत्याचार, धोखाधड़ी, छल-प्रपंचों, षड्यंत्रों, भ्रष्टाचार, दुराचार, अन्याय को समाज और देश में फैलाया गया | जिसके कारण भारत में आपसी भाईचारे की भावना ,मित्रता की भावना को नहीं बन सकी ,जिससे देश सामाजिक,मानसिक,वैज्ञानिक,आर्थिक,शैक्षिक क्षेत्रों में लगातार पिछड़ता गया |
5- कथनी और करनी में अंतर रखना अर्थात राष्ट्र के लोगों को समाज के लोगों को परम पिता की संतानों को अर्थात अपने भाइयों मित्रों और परिजनों जो राष्ट्र के रूप में राष्ट्रीय परिवार में माने जाते हैं उनको धोखा देना, गुमराह करना उनसे छुपाकर उनको मूर्ख बनाकर, उनके साथ छल-कपट कर, ,धोखा देकर संपत्ति, सत्ता, संसाधन एकत्र करना संपत्ति को जो सभी के हिस्से की है, उसको अपने व्यक्तिगत रूप में एकत्रित कर में पूंजीवाद की व्यवस्था को लागू करना |इस व्यवस्था से अपने पास हड़प कर रखना देश में रखना तथा विदेशों में जमा की| जिससे देश की जनता को भयंकर समस्याओं का सामना करना पड़रहा है ।
6-- भारतीय संस्कृति में, हिंदू संस्कृति में, वैदिक संस्कृत में, सनातन संस्कृत में इन संस्कृतियों के अनुयायियों के द्वारा धर्म के ठेकेदारों के द्वारा लोगों को अंधविश्वास में फंसा कर उनको वैज्ञानिक सोच के कारणों कार्य के सिद्धांत से दूर रखा | भाग्य और भगवान के भरोसे जीने के लिए प्रेरित किया |जिससे कि वह अपने अधिकारों अपनी शक्तियों, अपनी उर्जा और अपनी विराट शक्ति जिसमें प्रत्येक मनुष्य “अहम् ब्रह्मास्मि” का उद्घोष कर सके और इस ब्रह्मांड की बड़ी सी बड़ी शक्तियों की क्षमता प्राप्त कर सके, इससे दूर कर उसको हीन भावना में डालना और उसका शोषण करना और उसको समानता, खुशहाली, स्वाभिमान एवं भौतिक संसाधन उपलब्ध न हो सके, ऐसा वातावरण तैयार किया गया है| जब तक इस षड्यंत्र की सच्चाई जनता के सामने नहीं आएगी, तब तक देश भिखारी, लाचार, गुलाम, मजबूर, मजदूर, निर्वल ,शोषित, पीड़ित बना ही रहेगा।
7-आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रत्येक मनुष्य में विराट ऊर्जा है, विराट शक्ति है- जो सनातन वैदिक, हिंदू, ग्रंथों में कहा जाता है कि भक्त के बस में भगवान है |अर्थात “अहम् ब्रह्मास्मि” (“में ब्रह्म हूँ”) ‘एकोअहम द्वितीयो नास्ति”,"अद्वैत वाद " (ईश्वर और मनुष्य या भोतिक जगत एक ही है दो नहीं हैं) जो यह सच्चाई है |इसके द्वारा देश के सभी व्यक्तियों को पर्याप्त ऊर्जावान, शक्तिमान एवं प्रज्ञावान ,ज्ञानवान एवं प्रतिभावान बनाना सच्चे राष्ट्रभक्त, सच्चे समाजसेवियों, सच्चे धार्मिक लोगों का पहला कर्तव्य है। जब तक घर-घर तक जन-जन तक उनके अंदर से हीन भावना,निराशा, कुंडा से मुक्ति नहीं दिलाई जाएगी तब तक पूरा समाज, देश, जनमानस इन बीमारियों से ग्रसित रहेगा| अर्थात बीमारियां ,कुपोषण, गरीबी, अत्याचार, अनाचार, भ्रष्टाचार, लूट ,उत्पीड़न, असुरक्षा आदि समस्याओं से मुक्ति नहीं पाई जा सकती है|
समता, बंधुता, भाईचारा धर्म का है यह पहला नारा-।“
सत्यमेव जयते” सत्य की जीत होती है|
और इसी आधार पर कबीर साहब ने भी कहां है कि-
सांच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप ।
जाके हृदय सांच है ताके हिरदे आप।।
गुरु नानक जी ने सत्य की खोज करके कहां है
“सत्य श्री अकाल, जो बोले सो निहाल” |
महापुरुषों ने भी कहा है कि सांच को आंच नहीं।
इसी सच्चाई के सामने आने पर इसी सच्चाई के पैमाने पर दोनों क्षेत्रों में धार्मिक अर्थात नैतिक, माननीय, ईश्वरीय -न्याय, समाज और देश एवं विश्व में सभी की खुशहाली के लिए आवश्यक है |
6- धर्म के नाम पर अधर्म ही अधर्म देश और समाज में कौन-कौन लोग फैला रहे हैं ?
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भारत में छुआछूत, ऊंच-नीच, मनुष्य- मनुष्य में अंतर क्यों किया गया था? जबकि लगभग सभी संप्रदाय के मुख्य ग्रंथ एवं मुख्य महान पुरुष, मुख्य संत पुरुष, मुख्य दार्शनिक,सुधारक सभी स्वीकार करते हैं कि सभी पुरुष, महिला, बच्चे, नर- नारी का परमपिता एक है । फिर मनुष्य मनुष्य में ऊंच-नीच छुआछूत एवं वैमनस्य की भावना क्यों है?
सर्वप्रथम हम जिनको हिंदू ,सनातन, वैदिक धर्म के लोग मानते हैं और ऐसा जो अपने को मानते हैं उसमें सभी उपनिषदों में कहीं भी ऊंच-नीच, छुआछूत, छोटा- बड़ा, का जिक्र नहीं है-
उदाहरण के लिए “ईशोपनिषद्” उपनिषद में पहले ही इस लोक में जो इस प्रकार है-
ओम ईशा बास्यम इदं सर्वं यत किंच जगत्यां जगत, तेन त्यक्तेन भुंजीथा मां ग्रधा कश्मिस्चिद |
इस महत्वपूर्ण श्लोकों का हिंदी अनुवाद इस प्रकार है कि इस संसार में जो कुछ भी है उसमें परमपिता का वास है इसलिए त्याग पूर्वक सभी वस्तुओं का उपभोग करो लोभ-लालच में किसी किसी दूसरे का हिस्सा मत छीनिए |
सर्वे भद्राणि पश्यंतु मां कश्चित् दुख भाग भवेत।
हिंदू संस्कृति, सनातन धर्म, वैदिक धर्म की बात करते हैं उसमें--
सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामय|
सर्वे भद्राणि पश्यंतु मां कश्चिद् दुख भाग भवेत् ।।
रामचरितमानस में तुलसीदास जी द्वारा सत्य से लोगों को अवगत कराया गया है --
हरि व्यापक सर्वत्र समाना, प्रेम से प्रकट हुए भगवाना||
सियाराम मय सब जग जानी, कराहु प्रणाम जोर जुग पानी||
ईश्वर अंश जीव अविनाशी, अजर अमर चेतन सुख राशि||
इसी प्रकार कबीर साहब ने भी यही शक्ति का उद्घोष किया है --
जो तिल माही तेल है, ज्यों चकमक में आग|
तेरा साईं तुझ में जाग सके तो जाग ||
कस्तूरी कुंडल बसे मृग ढूंढे बन माहि|
ऐसे घटि घटि राम है दुनिया देखे नाहि||
ध्यान योग के माध्यम से मनुष्य के द्वारा ब्रह्म की सृष्टि की अनुभूति की जा सकती है---
जो वेदों में उपनिषदों में कहा गया कि -”अहम ब्रह्मास्मि “”मैं ब्रह्म हूँ |
“एकोअहम द्वितीयो नास्ति “मनुष्य में ही भगवान है |
उसी को सत्य बताते हुए ,कबीर साहब ने कहा है कि
- जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहि |
सब अंधेरा मिट गया जब देखा दीपक माहि ||
बूँद समाई समुद्र में यह लखै सब कोई |
समुद्र समाया बूंद में यह लखे बिरला कोय|
कबीर साहब की रमैनी -8--
“तत्वमसि” इनके उपदेशा | ई उपनिषद कहैं संदेशा ||
--अर्थ है की सद्गुरु कहते हैं कि ब्रह्म वादियों का उपदेश है कि तत्वमासी अर्थात वह तुम ईस्वर स्वयं हो |
और उपनिषद भी यही संदेश देते हैं, उनको इस सिद्धांत पर पूर्ण विश्वास भी है |अधिकारी पात्र के मिलने पर ये इसी सिद्धांत का प्रतिपादन करते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि “तत्वमसि” वह तू ही है ही, इनका प्रामाणिक परम तत्व है।
सनक, सनंदन, सनातन ,सनत कुमार, नारद और सुखदेव आदि ने इसी सिद्धांत को अपनाया है और इसी सिद्धांत पर याज्ञवल्क्य और जनक का संवाद भी हुआ है |
श्रीमद् भागवत पुराण में दत्तात्रेय ऋषि इसी का रसास्वादन करते हैं| श्री राम श्री व वशिष्ठ जी ने भी उसी राग को गाया है| इसी सिद्धांत पर श्री राम और वशिष्ठ जी में संवाद भी हुआ| है|श्री कृष्ण ने उद्धव जी को श्रीमद्भागवत में इसी का उपदेश दिया है।
याज्ञवल्क्य अष्टावक्र जी ने तो जनक जी से इस उपदेश को इतना द्रण कर दिया है कि वह देह में रहते हुए भी विदेह कहलाने लगे |
कबीर साहब की साखी-
मूस ,बिलाई एक संग, कहु कैसे रह जाय |
अचरज एक देखो हो संतो, हस्ती सिंहहि खाय ।। 12।|
अर्थ है- कबीरदास जी कहते हैं कि भक्ष्य और भक्षक चूहा और बिल्ली एक संग नहीं रह सकते क्योंकि बिल्ली चूहे को खा जाएगी |अतः जीव माया की संगत में पड़कर कैसे निर्विकार रह सकता है। संतों आश्चर्य की बात यह है कि हाथी अर्थात मन-माया, शेर अर्थात जीव को खा रही है |स्वरूप ज्ञान के बिना सिंह रूप जीव को माया रूपी हस्ती खा गई।
8-देश में जितने भी संसाधन उपलब्ध है वह परम पिता की संतान होने के नाते सभी राष्ट्र रूपी परिवार के सदस्यके सभी के बरावर -बरावर हैं—
अर्थात भाई भाई हैं| मित्र हैं इसलिए सभी संसाधनों को मिल बांट कर उपयोग में लाना न्याय संगत है| तभी हम सच्चे धर्म के, मानवता के अनुयाई, नैतिकता के अनुयाई बनकर अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं अन्यथा इसके विपरीत आचरण क्या हो सकता है इसके के बारे मैं आप स्वयं ही जान सकते हैं सोच सकते हैं |इसलिए सभी को खुशहाल और सुरक्षित आनंदमय जीवन जीने का अधिकार है |अन्यथा कोई भी सुरक्षित, शान्ति प्रिय और आनंदमय जीवन व्यतीत नहीं कर सकता| वह अपना और दूसरों का नर्क स्वयं तैयार कर रहा है |चाहे भले ही कितने संसाधन, धन-संपत्ति एकत्रित भले ही कर ले।
वर्तमान भारत के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण सच्चाई एवं जानकारियां–
पृथ्वी ग्रह पर अर्थात विश्व के नक्शे पर लगभग 200 देश हैं। इन देशों में हमारा भारत देश भी है |
पहला आद्दूयात्समिक क्षेत्र है, तो दूसरा आर्थिक,(भौतिक) क्षेत्र है --- जिसमें अन्य देशों की तुलना में भौतिक अर्थात आर्थिक एवं वैज्ञानिक संसाधनों के स्तर पर हमारा देश किस पायदान अर्थात किस स्थिति में किस सीढ़ी पर है? इसका हमको भली-भांति सटीक ज्ञान होना आवश्यक है| तभी हम अपनी सही स्थिति और सच्चाई को जान सकते हैं|
भौतिक ,आर्थिक, वैज्ञानिक जीवन में उपयोग में आने वाले आवश्यक ,आरामदायक एवं विलासिता पूर्ण संसाधन के आधार पर हम कितनी समानता अपनाते हैं| यह दो मापदंड परस्पर एक दूसरे के साथ अपनाए जाते हैं |क्योंकि यह दो मापदंड पहला आध्यात्मिक अर्थात धार्मिक दूसरा भौतिक क्षेत्र अर्थात मापदंड यह दोनों क्षेत्र एक पक्षी के दो पंखों की तरह है| अर्थात मनुष्य के जीवन के दोनों अनिवार्य पहलू हैं और दोनों का तालमेल सामंजस्य होना अनिवार्य है |अन्यथा दोनों के तालमेल के बिना पक्षी रूपी मनुष्य विकाश, खुशहाली और आनंद की उड़ान नहीं भर सकता |
कौन व्यक्ति कितना धर्मी और अधर्मी कितनी मात्रा में है ?तभी हम जान सकते हैं जब एक दूसरे से तुलना करेंगे। यही स्थिति व्यक्ति से व्यक्ति में तथा संस्कृति से संस्कृतियों में, संप्रदायों से संप्रदायों में, प्रदेश से प्रदेशों में, देश से देशों में मापदंड रहता है।
अब अपने देश, अपने भारत राष्ट्र की बात आती है, तो हमें निश्चित रूप से अन्य विकसित देशों में हम कहां पर खड़े हैं इसका वास्तविक आकलन करना सच्चाई स्वीकार करना हम सभी का परम कर्तव्य है|
इस मापदंड में प्रथम क्षेत्र आता है --- प्रकृति के साथ मनुष्य का संबंध अर्थात सृष्टि की अन्य महत्वपूर्ण चीजें जैसे पेड़, पौधे, वनस्पतियां अन्य जीव एवं वन्य जीव एवं पालतू जीव एवं पक्षी एवं छोटे जीव जंतु| उनको भी प्रकृति, नेचर, ईश्वर, परमपिता जिसको भी कहें उसने हमारे साथ साथ पैदा किया है |उनके बिना हमारा जीवन संभव ही नहीं है| साथ ही मनुष्य शरीर पांच तत्वों से बना है| जिससे उसका अस्तित्व , उनमें क्षिति, जल, पावक, गगन, वायु अर्थात पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु इन पांच तत्व के जोड से अर्थात मिलने से मनुष्य की उत्पत्ति और पूरी सृष्टि की उत्पत्ति हुई है।मनुष्य प्रकृति की अन्य सभी कृतियों में महत्वपूर्ण है|प्रकृति के बिना मनुष्य के अस्तित्व और जीवन तथा मनुष्य जीवन की खुशहाली, आनंद ,शांति एवं विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती है|
जीवन का दूसरा महत्वपूर्ण क्षेत्र भौतिक क्षेत्र है- मनुष्य जीवन की भौतिक आवश्यकताओं से संबंधित है इस क्षेत्र में मनुष्य के जीवन की विकास की गति में उसके साधन उसकी सुविधाएं उसकी संपन्नता अर्थात आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता हैं । इस क्षेत्र में साधनों के संपत्ति के बंटवारे की बात आती है|
जो किसी भी देश के नागरिकों के अर्थात व्यक्ति से व्यक्ति के बीच में तुलना का विषय बन जातेहैं। इसी तरह एक राष्ट्र और दूसरे राष्ट्र के बीच में तुलना का विषय बनता है| जब हम राष्ट्र या देश की बात करते हैं, तो पहले हमारा कर्तव्य यदि देश और राष्ट्र के प्रति जिसे हम अपना राष्ट्र रूपी परिवार कहते हैं| उस परिवार के प्रति वफादारी करना हमारा परम कर्तव्य बनता है। गांव से जिला, प्रदेश की भी इस संबंध में चर्चा करना आवश्यक है, क्योंकि भारत मैं व्यक्ति- व्यक्ति में , गांव -गांव में, प्रदेश- प्रदेश में विकास के मापदंड में आर्थिक आधार आ जाता है| यानी आर्थिक संपन्नता और विपन्नता में तुलना की जाती है।
इसी तरह पूरे विश्व में जब हम अपने भारत राष्ट्र की बात करते हैं, तो हमको भारत में निवास करने वाले भारतवासी परिवार के प्रति संवेदनशील एवं सहानुभूति पूर्वक, परिवार के सदस्यों के प्रति मित्रता एवं भाईचारे वाला संबंध होना आवश्यक है |अन्यथा हम राष्ट्र और मातृभूमि की बात किस आधार पर कह सकते हैं। इस राष्ट्र रुपी परिवार के प्रति हम जवाब देह हैं। और ऐसा परिवार के प्रति हम भाईचारा और मित्रता पूर्वक व्यवहार नहीं करते हैं तो निश्चित रूप से परिवार के प्रति राष्ट्र के प्रति गद्दारी, राष्ट्रद्रोह, देशद्रोह, के दोषी निश्चित रूप से हैं।
देश में समस्याओं का समाधान आवश्यक है- क्योंकि लोग देश मैं अपने राष्ट्रीय परिवार के सदस्यों के साथ धोखाधड़ी, छल- प्रपंच, अत्याचार, अन्याय, शोषण, भ्रष्टाचार करके उनके हिस्से की संपत्ति को और साधनों को चालाकी से, छल-बल, कपट पूर्वक अपने पास पूंजीवाद के रूप में एकत्रित करके देश में तथा विदेशों में जमा कर रहे हैं और विदेशी लोगों को इससे बड़ी मात्रा में लाभ पहुंच रहे हैं और हमारे परिवार अर्थात राष्ट्र रुपी परिवार के सदस्य भूखमरी, गरीबी, शोषण, अत्याचार अनाचार , उत्पीड़न के शिकार होकर , घुट घुट कर मरने के लिए मजबूर किए जा रहे हैं| यह सब जानबूझकर किया जा रहा है| ऐसे लोगों का पर्दाफाश होना चाहिए! तभी हम सच्चे मनुष्य कहे जा सकते हैं और ईश्वर परमात्मा और प्रकृति के न्याय के अनुसार कार्य करते हुए माने जा सकते हैं| अन्यथा जो ऐसा नहीं करते उनके लिए राष्ट्र भक्ति,, राष्ट्रीय भावना, धर्म, मानवता ,,नैतिकता ,न्याय, शांति, सुरक्षा की बात करना पूरी तरह बेवकूफी और मूर्खता भरा कदम है।
इस संपूर्ण ब्रह्मांड में अनेकों ग्रह है| उन ग्रहों में पृथ्वी भी एक ग्रह है |पृथ्वी से भी बड़े बड़े कितने ही अन्य ग्रह हैं| जो वैज्ञानिकों ने पूरे जीवन की तपस्या पूर्ण खोज के साथ आज सभी के सामने प्रस्तुत किया है |प्रमाण के लिए आज हम पूरी दुनिया से परिवार की तरह जुड़ गए हैं, जिसमें एक महत्वपूर्ण उदाहरण सेटेलाइट से पूरी पृथ्वी पर हो रही सूक्ष्म से सूक्ष्म गतिविधियों पर नजर रखी जा रही है| इसी का जीता जागता उदाहरण इंटरनेट है |जिससे आज हम पूरे विश्व की गतिविधियों से आपस में परिवार की तरह जुड़े हुए हैं| जिसको ग्लोबलाइजेशन अर्थात ग्लोबल फैमिली माना जाता है। इस पृथ्वी को विश्व के नक्शे के रूप में सभी के सामने बारीकी से प्रस्तुत किया गया है| जिसमें सभी छोटे-बड़े महाद्वीपों द्वीपों ,छोटे बड़े देशों के बारे में जानकारी सभी के सामने प्रस्तुत है।
प्रथ्वी पर अर्थात विश्व के नक़्शे पर कुल लगभग 200 देश हैं | इन्हीं में से एक देश भारत भी है- |जिसमें हम सभी निवास करते हैं| सभी देशों की अपनी अपनी सीमाएं हैं |सीमाओं पर सुरक्षा के लिए बड़ी संख्या में सेनाएं तैनात हैं |और बड़ी संख्या में लगातार सैकड़ों देशों में से अनेकों देशों में युद्ध चलते रहते हैं और उन युद्ध में अनेकों सैनिक आपस में लड़कर मारे जाते हैं| उनके बच्चे, परिवार मित्र तड़पते बिलखते घुट घुट कर जी कर मर जाते हैं।
1 - आज भारत की विश्व में क्या स्थिति है? इसको जानना परम आवश्यक है, क्योंकि हम केवल अपनी दयनीय आर्थिकस्थिति का पता तभी लगा सकते हैं, जब दूसरों की तुलना करेंगे |यही उत्थान और पतन पिछड़े और अगड़े विकसित और विकासशील करदाता और करजी अर्थात ऋण दाता और ऋणी एवं भिखारी एवं दाता कौन क्या है ?
२-हमारे देश में हमारे पूर्वजों की संस्कृति का पहनावा नहीं है अर्थात पैंट, सूट, टाई,के पहनावे की मजबूरी के कारणों पर सोचना होगा|
3- हमारे देश की केंद्रीय सरकार जिससे सारा देश संचालित है| केंद्र सरकार के सभी कार्य अंग्रेजी भाषा में होते हैं |सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट इनमें सभी में अंग्रेजी का उपयोग किया जाता है| साथ ही सभी विदेशों एवं अंतर्राष्ट्रीय कार्यों में अंग्रेजी भाषा का ही उपयोग किया जाता है| हमारे देश की भाषाओं का क्यों नहीं पयोग हो सका | अर्थात हम भाषा और बोली के रूप में भी आज भी मजबूर हुए |
4 –देश घोर गरीबी, भुखमरी, अत्याचार, शोषण, व्यभिचार, अनाचार, द्वेष भावना से ग्रसित है | इससे अधिक नरक की स्थिति क्या हो सकती है।
5-पूंजीवादी व्यवस्था अर्थात दुष्ट शैतानी व्यवस्था को मानने वाले लोग परमपिता के संदेश एवं भावनाओं के विपरीत दुष्टता पूर्वक कार्य कर रहे हैं| जब कि सभी धार्मिक, मानवता प्रेमी, ईश्वर वादी, शांतिप्रिय, प्रकृति प्रेमी लोग आपस में मित्रता पूर्वक भाईचारे से जीने में आनंद अनुभव करते हैं| यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है?
-देश की प्रमुख समस्याएं-
1 – जीवन रक्षा सभी मनुष्यों का पहला उद्देश्य है एवं पहली आवश्यकता है जो गंभीर बीमारी
दुर्घटना के समय महंगे इलाज जो 20 से 50 सों लाखों रुपये धन खर्च करके उपलब्ध होता है|
जो लाखों रुपए देश में हजार में एक व्यक्ति के पास भी नहीं है और जो कुछ भी होता
है| वह भी बीमारी के महंगे इलाज के कारण उसका बिक जाता है और देश में सरकारी
आंकड़ों के अनुसार प्रतिवर्ष 18 करोड़ लोग महंगे इलाज के कारण गरीबी की रेखा से नीचे चले जाते हैं|
देश में दूषित पानी के पीने से लगभग 17 करोड लोग प्रतिवर्ष भयंकर जानलेवा बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं |यह आंकड़ा भारत सरकार का आंकड़ा है।
सभी सरकारों का परम कर्तब्य सभी नागरिकों का महंगे से महंगा इलाज निशुल्क कराना सभी सरकारों की पूरी जिम्मेदारी है क्योंकि सरकार पूरे राष्ट्रीय परिवार की मुखिया होती हैं |
२-देश में लाखों की महंगी पब्लिक स्कूलों एवं उच्च तकनीकी शिक्षा जैसे मेडिकल इंजीनियरिंग, एमसीए, एमबीए, इत्यादि 15 से 50 सों लाख के लगभग की महंगी शिक्षा होने के
कारण देश के 5000 लोगों में से एक व्यक्ति भी इसको हासिल नहीं कर पा रहा है जबकि उसका समान शिक्षा का ईश्वरीय, मानवीय, संवैधानिक, नैतिक,धार्मिक अधिकार है| यह सरकारों का कर्तब्य है।
3 – देश में सभी लोगों के आवास की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए जबकि देश में 50% से अधिक लोगों के पास उचित आवास की व्यवस्था उपलब्ध नहीं है| यह उनका मानवीय , संवैधानिक, ईश्वरीय ,नैतिक, प्राकृतिक,धार्मिक , सामाजिक अधिकार है|
4-देश में सभी के रोजगार की व्यवस्था सरकार की जिम्मेदारी है |देश में आधी आबादी बेरोजगारी की शिकार है जिससे उसका जीवन नर्क बन चुका है|
5-देश में सभी नागरिकों की सुरक्षा एवं सम्मान की रक्षा सरकारों की पूर्ण जिम्मेदारी है | जबकि देश में सभी नागरिकों की असुरक्षा और अपमान की निरंतर स्थितियां सामने आती हैं|
6-इन सभी समस्याओं का प्रमुख कारण भ्रष्टाचार शोषण अत्याचार है| देश में कुछ दुष्ट प्रवृत्ति
के लोग अर्थात भ्रष्टाचारी लोग ईश्वरीय इच्छा के विरुद्ध, प्रकृति एवं स्रष्टि के उद्देश्यों के विरुद्ध कार्य कर रहे हैं| जो अति निंदनीय और दुष्टता पूर्वक कार्य हैं| जो कई तरीकों से शोषण, भ्रष्टाचार, अनाचार, अन्याय, द्वेष भावना से ग्रसित हैं|
जो मनुष्य को मनुष्य न मानकर, परस्पर भाईचारा मित्रता पूर्वक व्यवहार न करके ऐसा दुष्टता पूर्वक कार्य कर रहे हैं| इन्हीं कारण सारी समस्याओं का जन्म हुआ है| जैसे कुछ सरकारों के कई मंत्रीगण,कई आई ए एस कई आई पी एस .कई आई आर एस,कई अन्य केन्द्रीय सेवाओं के उच्चाधिकारी ,प्रशासनिक उच्चाधिकारी ,इंजीनीयर्स एवं अन्य प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा कमीसन खोरी ,जालसाजी एवं विभिन्न तरीकों से भ्रष्टाचार करके करोणों,अरबों रुपयों की चोरी करके कालाधन एकत्रित किया जाता है | वर्ष 2017 बीजेपी सरकार के द्वारा नोट बंदी के समय सरकार द्वारा घोषणा की गई की थी कि काला धन जिसके पास है वह 40%सरकार के पास जमा करके 60% इमानदारी का पैसा बना सकता है |देश में धन की कमी नहीं है| देश के सभी नागरिकों का महंगे से महंगा इलाज ,महंगी शिक्षा,एवं पर्याप्त आवास की ब्यवस्था इस चोरी,भष्टाचारी,कमीसन खोरी के धन से आसानी से की जासकती है |900 लाख करोड़ रुपये के रूप में इस काले धन के पर्याप आंकड़े साक्ष्यों सहित उपलब्द्ध हैं |
इसके निदान के लिए भी निम्न प्रकार के उपाय हैं-
देश की समस्त समस्याओं के आसान समाधान -- - देश में सज्जन, मानवता प्रेमी, प्रकृति प्रेमी न्लोयाय प्गोंरिय ,नैतिक लोगों की कमी नहीं है| ऐसे लोगों को संगठित होकर एक टीम में कार्य करने की आवश्यकता है और यही सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है| और महत्वपूर्ण कार्य है| जिसके द्वारा सभी समस्याओं का समाधान संभव है| क्योंकि लुटेरे, डकैत ,भ्रष्टाचारी, दुराचारी बड़ी संख्या में नहीं है, जो भी जितने भी हैं वह एक दूसरे को सहयोग करते हैं| इसलिए वह सफल हो जाते हैं ।
यदि सज्जन व्यक्ति संगठित होकर के प्रत्येक गांव- मोहल्ला, नगर, जनपद, प्रदेश और देश स्तर
पर कार्य करें तो सभी समस्याओं का समाधान बिल्कुल सरल और निश्चित है|
इसलिए सज्जनों को संगठित होकर के राष्ट्रीय स्तर पर एक टीम में कार्य करने की आवश्यकता है| इसके लिए देश भर में अभियान चलाया जा रहा है और राष्ट्रीय स्तर पर सज्जन ,मानव प्रेमी, ईश्वर को मानने वाले,, धर्म को मानने वाले प्रकृति को मानने वाले लोग संगठित हो रहे हैं| जिससे सभी लोग खुशहाली पूर्वक, आनंद में जीवन जी सकें और अपने जीवन को सार्थक कर सकें| आइए हम सब मिलकर अच्छा समाज देश और विश्व बनाए| जिसमें खुशहाली ही खुशहाली हो, आनंद ही आनंद मय जीवन रहे और जीवन परमानंद बन जाए| ऐसी कामनाओं के साथ सभी का हार्दिक स्वागत है एवं अभिनंदन है।
महेश मानव-लक्ष्मी नगर ,दिल्ली-110092
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